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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास
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रविवार, ९ ऑगस्ट, २०२०

कक्षा छटी, हिंदी,६.मेरा अहोभाग्य

            ६.मेरा अहोभाग्य


१. प्रश्न एवं उत्तर प्रश्न 
१. कोष्ठक में से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करो [ बेसब्री, विस्तृत, बांग्ला, गुरुदेव ] 
(१) शांति निकेतन में हमारे कमरे के बाहर एक....... बरामदा था। 
(२) हम........ से गुरुदेव से मिलने का इंतजार करने लगे।
 (३) हम सबको .........से परिचित कराया गया।
 (४) गुरुदेव ने जब लिखना शुरू किया, तब .......भाषा में ऐसी कोई चीज नहीं थी।

 उत्तर : (१) शांति निकेतन में हमारे कमरे के बाहर एक विस्तृत बरामदा था। 
(२) हम बेसब्री से गुरुदेव से मिलने का इंतजार करने लगे। 
(३) हम सब को गुरुदेव से परिचित कराया गया। 
(४) गुरुदेव ने जब लिखना शुरू किया, तब बांग्ला भाषा में ऐसी कोई चीज नहीं थी। 

प्रश्न २. कथन के सामने सही√ और गलत× ४का चिह्न लगाओ : 
(१) गुरुदेव की प्रारंभिक कहानियाँ ग्रामीण जीवन की हैं। √
(२) शांति निकेतन का अतिथि भवन बकुल वृक्षों के बीच बना था। ×
(३) काबुलीवाला गुरुदेव के घर आता था। √
(४) गुरुदेव ने लेखकों के दल से चालीस मिनट तक बातें की। √
(५) 'गीतांजलि' को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।×

प्रश्न ३. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखो :
 (१) साहित्यिक कार्यक्रम कहाँ होने वाला था?
उत्तर : साहित्यिक कार्यक्रम शांति निकेतन में होने वाला था।
(२) गुरुदेव की कहानियों में कौन-सी मनोवृत्ति के दर्शन होते हैं?
उत्तर : गुरुदेव की कहानियों में ग्रामीण जनता की मनोवृत्ति के दर्शन होते हैं।
 (३) संस्मरण में किस कहानी का उल्लेख किया गया है?
उत्तर : संस्मरण में 'काबुलीवाला' कहानी का उल्लेख किया गया है।
(४) लेखक आनंद विभोर क्यों हुए?
उत्तर : लेखक ने जब यह जाना कि जिस कमरे में उन्हें ठहराया गया है, वहीं बैठकर गुरुदेव ने अपनी 'गीतांजलि' का अधिकांश भाग लिखा था, तो वे आनंद विभोर हो गए।
(५) कार्यक्रम की अध्यक्षता कौन करने वाला था?
उत्तर : कार्यक्रम की अध्यक्षता गुरुदेव रवींद्रनाथ करने वाले थे।

मुक्तोत्तरी प्रश्न
जरा सोचो...बताओ :

यदि मैं पुस्तक होता/होती, तो... 

यदि मैं पुस्तक होता/होती, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होती। पुस्तकें ज्ञान का भंडार तो होती ही हैं, साथ ही मनोरंजन का साधन भी होती हैं। छोटे बच्चे रंग-बिरंगी, आकर्षक, कार्टून पुस्तक देखकर मुझे लेने के लिए मचलते तो मैं भी उनके छोटे-छोटे, कोमल फूल जैसे हाथों में जाने के लिए लालायित हो उठती। मनपसंद पुस्तक पाने पर बच्चों को जो खुशी होती, उससे मैं भी प्रसन्न हो जाती। वे बार-बार मुझे पढ़ते, फिर इधर-उधर डाल देते। मैं चाहती कि वे मुझे सँभालना सीखें। विद्वानों के घर में, धर्मप्रिय लोगों के घर में मुझे बहुत संभालकर रखा जाता। पुस्तकालयों में मेरी संख्या भी बहुत अधिक होती और पढ़ने वाले भी। मैं चाहती कि छोटे-बड़े सभी मुझे पढ़कर अच्छी बातें सीखें।

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