Godavari Tambekar

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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

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हिंदी कहानी लेबल असलेली पोस्ट दाखवित आहे. सर्व पोस्ट्‍स दर्शवा
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शनिवार, १८ डिसेंबर, २०२१

डिसेंबर १८, २०२१

चतुर डॉक्टर

         चतुर डॉक्टर



 राजू नाम का एक लड़का था। वह पढ़ाई के प्रति बहुत लापरवाह था। वार्षिक परीक्षा सिर पर आ गई थी। राजू को अनुत्तीर्ण होने का डर था, इसलिए वह किसी तरह परीक्षा से बचना चाहता था। राजू के एक मित्र ने उसे सलाह दी, "तुम अपनी याददाश्त खो जाने का ढोंग करो। " राजू को यह सलाह पसंद आ गई। उसने माँ को पहचानने से इनकार कर दिया। पिता जी उसके कमरे में आए, तो वह बोला, "कौन हैं आप? मेरे कमरे में क्यों आए हैं? चले जाइए यहाँ से। " राजू के पिता घबरा गए। उन्होंने राजू के मित्र से पूछताछ की। मित्र ने बताया, "राजू स्कूल में से सीढ़ियों से गिर गया था। तब से वह अपनी याददाश्त खो बैठा है। " राजू के पिता ने फौरन डॉक्टर को बुलाया। चतुर डॉक्टर को यह समझते देर न लगी कि राजू ढोंग कर रहा है। डॉक्टर ने पर बर्द राजू के पिता से कहा, "इस लड़के के सिर में कुछ गड़बड़ हो गई है। इसके सिर का ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन का नाम सुनते ही राजू घबरा गया। उसने सब कुछ कबूल कर लिया। उसने कहा, "परीक्षा से बचने के लिए ही मैंने यह नाटक किया है। " पिता ने राजू को समझाया, “बेटा, अब भी समय है। अगर तुम लगन से पढ़ोगे, तो अवश्य उत्तीर्ण होगे। " राजू ने पिता को बात मान ली। उसने मन लगाकर पढ़ाई की और परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया। सीख : संकट से डर कर नहीं, जूझकर ही पार पा सकते हैं।

डिसेंबर १८, २०२१

चित्रकार की चतुराई

      चित्रकार की चतुराई 



      एक चित्रकार था। उसे प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाने का शौक था। इसलिए वह प्रायः नदी के किनारे या बाग-बगीचों में जाकर चित्र बनाया करता था। एक बार चित्रकार घने जंगल में पहुँच गया। जंगल में एक जगह खूब हरियाली थी। रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे। चित्रकार वहाँ बैठकर एक चित्र बनाने लगा। तभी सामने से वहाँ एक शेर आ गया। शेर को देखते ही चित्रकार के होश उड़ गए। फिर भी उसने हिम्मत की और शेर से कहा, "हे जंगल के राजा, आप सामने वाले इस पत्थर पर बैठ जाइए। मैं आपका एक सुंदर चित्र बना दूँ। चित्र बनाने की बात सुनते ही शेर खुश हो गया और चित्रकार के सामने बैठ गया। चित्रकार देर तक शेर का चित्र बनाता रहा। कुछ देर के बाद वह शेर से बोला, “महाराज, आपके अगले भाग का चित्र तो बन गया। अब आप मुँह उधर करके बैठ जाइए तो मैं आपके पिछले हिस्से का भी चित्र बना दूँ। "

अपने पूरे शरीर का चित्र बनवाने के लालच में शेर पीछे की ओर मुँह करके बैठ गया। चित्रकार को काफी समय लगाता देख आँखें बंद करके सुस्ताने लगा। चित्रकार तो इसी मौके की ताक में था। उसने चित्र बनाने का अपना सारा सामान समेटा और मुझे आश्र चुपके से वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गया। इस प्रकार चतुराई से चित्रकार ने अपनी जान बचा ली। 

          सीख: चतुराई से काम लिया जाए, तो संकट को टाला जा सकता है।

डिसेंबर १८, २०२१

सत्यवादी राम

        सत्यवादी राम 



राम नाम का एक सुशील विद्यार्थी था। एक दिन गणित की कक्षा में अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया। उसमें सबको गणित का एक प्रश्न हल करना था। घर जाकर राम उस प्रश्न को हल करने में जुट गया। उसने खूब प्रयत्न किया, पर वह उस प्रश्न को हल न कर सका। राम ने अपने बड़े भाई से मदद माँगी। उन्होंने कुछ ही समय में प्रश्न हल कर दिया। राम की खुशी का ठिकाना न रहा। दूसरे दिन अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों का गृहकार्य देखा। केवल राम का ही उत्तर सही था। अध्यापक ने राम को शाबाशी दी। इस पर राम फूट-फूटकर रोने लगा। उसे रोते देखकर सब चकित रह गए। अध्यापक ने गोपाल से रोने का कारण पूछा। राम ने कहा, "गुरु जी, आपने मेरी प्रशंसा की, लेकिन मैं प्रशंसा के लायक नहीं हूँ। यह प्रश्न मैंने नहीं, मेरे बड़े भाई ने हल किया है। " राम की इस सत्यवादिता पर अध्यापक महोदय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, "बेटा, तुमने सच बोलकर सचमुच मेरा दिल जीत लिया है। यह सत्यवादिता तुम्हें एक दिन जरूर महान बनाएगी। " सीख सच बोलना एक श्रेष्ठ है।

डिसेंबर १८, २०२१

दहेज- एक बुरी बला

     दहेज- एक बुरी बला 

              अथवा 

दहेज- एक सामाजिक बुराई


 

         रूपेश नाम का एक युवक था। वह एक मोटर मैकेनिक था। मोना नाम की एक सुंदर लड़कों से उसका परिचय हुआ। परिचय बढ़ता गया और कुछ समय बाद दोनों ने विवाह कर लिया। मोना गरीब घर की, पर स्वभाव की अच्छी थी। विवाह के बाद कुछ महीने आनंद में बीत गए। इस बीच राकेश ने एक रिक्शा खरीदने का निश्चय किया। उसने मोना से कहा कि वह पचास हजार रुपये अपने पिता से ले आए, क्योंकि विवाह के समय दहेज के रूप में कुछ भी नहीं दिया था। इस पर मोना ने कहा, “तुम जानते हो कि मेरे पिता एक दफ्तर में मामूली क्लर्क हैं। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इतनी बड़ी रकम मैं उनसे कैसे माँग सकती हूँ ?" रूपेश रोज मोना से रकम लाने के लिए कहता और मोना साफ इनकार कर देती। फिर तो दहेज की रकम के लिए उनमें रोज झगड़ा होने लगा। कभी-कभी रूपेश मोना की मारपीट भी करता।एक दिन राकेश और मोना के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि मोना नाराज होकर अपने पिता के घर चली गई। मोना के पिता ने पुलिस में दहेज का केस कर दिया। परिणामस्वरूप न्यायालय ने रूपेश को छः महीने की जेल की सजा दी। 


सीख : दहेज की प्रथा हमारे समाज के लिए अभिशाप है। इसकी लेन-देन से दूर रहना चाहिए।