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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

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रविवार, २९ मे, २०२२

मेले में दो घंटे

               मेले में दो घंटे



     मेरा गाँव सरस्वती नदी के किनारे बसा हुआ है। नदी के पास ही माता भवानी का विशाल मंदिर है। नवरात्रि के दिनों में यहाँ भारो मेला लगता है। इसे 'भवानी मेला' कहते हैं।

      इस नवरात्रि पर मैं अपने मित्रों के साथ भवानी मेला देखने गया। मेला मंदिर के आगे खुले मैदान में लगा था। दूर-दूर के गाँवों से लोग मेला देखने आए थे। कुछ लोग बैलगाड़ियों में आए थे। कुछ ताँगे में सवार होकर, तो बहुत सारे लोग साइकिल से आए थे। बसों में भी लोग आ रहे थे। सभी लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए थे। उनके चेहरों पर बहुत खुशी थी। बच्चों और स्त्रियों का उत्साह देखने लायक था।

      मेले में छोटी-बड़ी अनेक दुकानें लगी हुई थीं। अधिकतर दुकानों में घर-गृहस्थी के नए-नए और आकर्षक सामान बिक रहे थे। मिठाइयों और खिलौनों की दुकान पर बच्चों और बूढ़ों की भारी भीड़ थी। गहनों की दुकानों पर स्त्रियों का जमावड़ा था। स्त्रियों के लिए शृंगार-सजावट की अनेक वस्तुएँ दुकानों में मिल रही थीं। काँच की चूड़ियों की दुकान पर महिलाओं की खूब भीड़ थी। कपड़ों की दुकानों पर भी लोग कपड़े देख रहे थे फेरीवाले चिल्ला-चिल्लाकर ग्राहकों को लुभा रहे थे। मैंने अपने छोटे भाई बहन के लिए कुछ खिलौने तथा मिठाई खरीदी। 

        मेले में मनोरंजन के साधन भी थे। एक कोने में चरखी घूम रही थी। वहाँ लोगों की लंबी कतार लगी हुई थी। एक ओर एक जादूगर जादू के खेल दिखा रहा था। वहाँ भी लोगों की बहुत भीड़ थी। बरगद के एक पेड़ के नीचे एक महात्मा जो धूनी लगाकर बैठे हुए थे। मेले में कुछ भिखारी भीख माँग रहे थे। 

       हर ओर उल्लास और उमंग का वातावरण था। मेला हो और खाने-पीने की व्यवस्था न हो, यह भला कैसे हो सकता है? मेले में घूमते-घूमते काफी समय हो गया था। भूख भी लगी थी। हमने भेल-पूरी खाई। 

     मेले में दो घंटे तक घूम-घूमकर देखने से हमें गाँव के जीवन की अच्छी-खासी जानकारी मिल गई। अंत में हृदय में मेले का आनंद और ताजगी ले कर हम पर की ओर चल पड़े।

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