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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास
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रविवार, २९ मे, २०२२

सरकस में दो घंटे

              सरकस में दो घंटे 



        पिछले रविवार को शाम को में अपने मित्रों के साथ जंबो सरकस देखने गया। आजाद मैदान में एक बहुत बड़ा तंबू लगाया गया था। तंबू का प्रवेश द्वार शानदार ढंग से सजाया गया था। तंबू के चारों ओर रंगबिरंगे बल्य जगमगा रहे थे। प्रवेश दूद्वार पर लोगों को भारी भीड़ थी। टिकट के लिए लंबी कतारें लगी हुई थी। हमने भी एक कतार में खड़े रहकर टिकट खरीदे। फिर तंबू में दाखिल हुए और कुर्सियों पर बैठ गए।

        घंटी बजी स्वागत गीत के साथ सरकस के कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। गीत खत्म होते ही सरकस को एक स्वस्थ और सुंदर बालिका दौड़ती हुई आई। देखते ही देखते वह ऊँचाई पर बँधे एक मोटे तार पर चढ़ गई। अपने दोनों हाथ हवा में फैलाए हुए वह तार पर एक पहिएवाली साइकिल चलाने लगी। इसके बाद कुछ और बालिकाएँ दौड़ती हुई आईं। वे ऊंचे बँधे झूलों पर अपने करतब दिखाने लगीं। बाद में कुछ घुड़सवार आए। वे सरकस के गोल घेरे में घोड़े दौड़ाने लगे। बीच बीच में वे भागते हुए घोड़ों पर कूदकर चढ़ जाते थे और उन पर खड़े होकर हवा में हाथ लहराने लगते थे। फिर शुरू हुआ बाघ और शेर का खेल दोनों भयानक पशु रिंग मास्टर के इशारों पर तरह-तरह के खेल दिखाने लगे। हाथियों, बंदरों और कुत्तों के भी कई खेल दिखाए गए। 

      इतने में दो पहलवान ताल ठोंकते हुए आए। उनमें से एक ने भागकर चलती हुई मोटर साइकिल पकड़ ली और अपनी ताकत से उसे रोक दी। दूसरा पहलवान पीठ के बल जमीन पर लेट गया। उसके सीने पर लकड़ी का एक तख्ता रख दिया गया। फिर एक भारीभरकम हाथी आया वह तख्ते के ऊपर पाँव रखकर चलते हुए गुजर गया शारीरिक शक्ति के इन अनूठे प्रदर्शनों को देखकर दर्शक 'वाह-वाह कर उठे।

          विदूषकों ने अपने अजीब हावभाव और अभिनय से दर्शकों को खूब हँसाया। सचमुच, सरकस मनोरंजन एवं ताजगी प्राप्त करने का एक अनूठा माध्यम है। सरकस के अद्भुत खेलों को देखकर लगता है कि बुद्धि, साहस और शक्ति के बल पर मनुष्य क्या नहीं कर सकता?

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