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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

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गुरुवार, ५ ऑक्टोबर, २०२३

तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

 तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा


तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा ।


अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है,


 तुझको किसी मज़हब से कोई काम नहीं है ।


जिस इल्म  ने इंसान को तक़सीम  किया है,


उस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है।


तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा,


इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।


मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया,


हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया।


 कुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती,


हमने कहीं भारत, कहीं ईरान बनाया।


जो तोड़ दे हर बंद, वो तूफान बनेगा,


इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा ।

नफरत जो सिखाए, वो धरम तेरा नहीं है,


इंसाँ को जो रौंदे, वो क़दम तेरा नहीं है।


कुरआन  न हो जिसमें, वो मंदिर नहीं तेरा,


गीता न हो जिसमें, वो हरम तेरा नहीं है।


तू अमन  का और सुलह  का अरमान बनेगा,


इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा ।

ये दीन के ताजिर , ये वतन बेचने वाले,


इंसानों की लाशों के कफन बेचने वाले।

ये महल में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे,


कांटों के एवज  रूह-ए-चमन  बेचने वाले।


 


तू इनके लिए मौत का ऐलान  बनेगा,


इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा

 

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