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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

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सोमवार, १८ सप्टेंबर, २०२३

कुत्ते की आत्मकथा

 

 कुत्ते की आत्मकथा



 [ रूपरेखा : (1) अनुभवी प्राणी (2) जन्म और बचपन (3) मालिक के घर में सुखी जीवन बीतना (4) बुढ़ापा और उपेक्षा (5) वर्तमान दशा । ]

                मैं गलियों में मारा-मारा फिरने वाला एक कुत्ता हूँ। मैंने अपने जीवन में बहुत सुख-दुख सहे हैं। मैं आपको अपनी व्यथा-कथा सुनाता हूँ। 

               मेरी माँ एक किसान परिवार की पालतू कुतिया थी। उसी के घर में मेरा जन्म हुआ था। मैं अपनी माँ के पीछे-पीछे इधर-उधर घूमा करता था। मेरा रंग दूध की तरह सफेद था। बच्चे-बूढ़े सभी मुझे प्यार से उठा लेते थे। वे मुझे गोद में लेकर सहलाते। लोग मुझे तरह-तरह की चीजें खाने के लिए देते थे। मुझे बिस्कुट बहुत अच्छे लगते थे। मैं बहुत खुश था। 

                एक दिन उस किसान ने मुझे एक अमीर आदमी के हाथों सौंप दिया। उस वक्त मैं बहुत सुंदर और तंदुरुस्त था। मेरा मालिक मुझे पाकर बहुत खुश हुआ। वह मेरा बहुत ख्याल रखता था। वह मुझे 'टॉमी' कहकर बुलाता था। जहाँ भी जाता, वह अपने साथ मुझे ले जाता था। कभी-कभी वह मुझे कार में बिठाकर हवाखोरी भी कराता था। 

                 मै भी अपने मालिक की बहुत सेवा करता था। रात के समय मैं उसके बँगले की रखवाली करता था। मेरे रहते किसी भी बाहरी आदमी की बँगले में आने की हिम्मत नहीं होती थी। मालिक के बच्चे मुझे बहुत प्यार करते थे। कभी-कभी वे मुझे अपने साथ गेंद खेलाते थे। इसमें उन्हें बड़ा मजा आता था।

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