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पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

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शुक्रवार, १० जून, २०२२

चाँदनी रात में नौका विहार

            चाँदनी रात में नौका विहार 



[ रूपरेखा (1) चांदनी रात की सैर (2) चाँदनी की शोभा (3) नदी तट का वर्णन (4) नौका विहार का आनंद (5) मन पर प्रभाव। ] 

              नाव में बैठकर नदी में सैर करना किसे अच्छा नहीं लगता? रात चाँदनी हो, तब तो कहना हो गया। पिछली शरद पूर्णिमा  की रात को मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ नौका विहार का आनंद लिया। 

       नौका विहार करने हम सरस्वती नदी के किनारे पहुँच गए। शरद पूर्णिमा का चाँद पूरी तरह खिला हुआ था। चाँदनी के रूप में वह धरती पर अमृत बरसा रहा था। हवा के शीतल झोंके वातावरण को खुशनुमा बना रहे थे।

       नदी के तट पर चाँदनी रात मनाने के लिए बहुत से लोग आए हुए थे। एक ओर कुछ बच्चे बाजे बजा रहे थे और शोर-गुल कर रहे थे। कुछ लोग फिल्मी गीत गा रहे थे। कुछ लोग ढोल, मजौरे को ताल पर नाच रहे थे। खोमचेवालों को अच्छी बन आई थी। 

       पूनम की रात में नदी का जल चाँदनी से खेल रहा था। नदी में कई नायें पाल ताने तैर रही थीं। उन पर छोटे-छोटे दीपक टिमटिमा रहे थे। इनसे नदी का दृश्य और भी मनोरम लग रहा था।           हम भी एक नाव पर बैठ गए। पाल खुलते ही नाव सरपट चल पड़ी। नदी की लहरें नाथ से टकरा रही थीं। शीतल जल को फुहारों से हम पुलकित हो उठे। नदी के पानी में चाँद-सितारों के प्रतिबिंब देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया। हमारी तरह कई लोग नावों में सैर कर रहे थे। नावों में आपस में होड़ सी लगी हुई थी हमारा नाविक बहुत फुरतीला था। एक बार तो हमारी नाव पलटते-पलटते बची। कुछ माँझी नाव खेते-खेते गीत गा रहे थे। हमारी नाव के माँझी के पास भी गीतों का खजाना था। उसका गला भी बहुत सुरीला था।

          बहुत दूर तक जाने के बाद हमारी नाव वापस लौट पड़ी। वापसी के समय माँझी को बहुत मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि नाव अब नदी के बहाव को उल्टी दिशा में आ रही थी। माँझी को इस बार चप्पू (डाँड़) के सहारे नाव को खेना पड़ा था। 

          नौका विहार के बाद हमने नदी के तट पर जलपान किया। बाद में कुछ देर तक हम नदी के तट पर घूमते रहे। उस रात का नौका विहार मुझे आज भी याद आ रहा है।

       मुझे एक छायादार पेड़ के नीचे अकेला छोड़कर वह दिव्य बालक रथ सहित अदृश्य हो गया। लेकिन मैं यवराया नहीं। मैं प्रकृति का आनंद लेने लगा। इतने में वहाँ मेरी उम्र के कई सुंदर लड़के आ पहुँचे। ये सभी दिव्य बालक लग रहे थे। उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा। वे हिंदी में बातें कर रहे थे। उन्होंने मुझे बताया कि यह नंदनवन है। यहाँ केवल भले लोग ही आ सकते हैं। उन्होंने कहा, अब तुम हमारे मित्र हो। हम हर तरह से तुम्हारी मदद करेंगे। वे मेरे लिए ढेर सारे खिलौने लाए थे। वे सारे खिलौने उन्होंने मुझे उपहार में दे दिए। 

        इस प्रकार बातचीत चल रही थी कि तभी वहाँ एक देवी प्रकट हुई। वे बहुत ही सुंदर और तेजस्विनी थीं। एक दिव्य बालक ने मुझसे कहा, "ये हमारी माता है। इनका नाम महालक्ष्मी है। मैंने माँ महालक्ष्मी को प्रणाम किया। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा। माता ने मुझे कमल का एक फूल देकर कहा "इसे संभाल कर रखना। इससे तुम जो भी माँगोगे तुम्ह मिल जाएगा। "

    माता महालक्ष्मी के दर्शन कर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। तभी मेरी माँ मुझे कझारती हुई बोली "अरे उठ देखता नहीं, दिन चढ़ आया है। आज क्या स्कूल नहीं जाना है? मैंने हड़बड़ा कर आँखें खोलीं। 

कितना अनोखा और मजेदार था वह स्वप्न |

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